दो का आलू
दो का आलू
दो का आलू चार सौ का चिप्स हम बनाते हैं
चिप्स में मोनू का शक्ल भूल जाते हैं
आदमी कूड़ा नहीं
कूड़ा उसके दिमाग में है
जिसे वो फैलाता रहता है
इधर-उधर गन्दगी के तरह
सही करने के चक्कर में
गलत हम तो नहीं भूल जाते हैं
अपने अन्दर झाँक नहीं पाते हैं
दो का आलू चार सौ का चिप्स हम बनाते हैं
चिप्स में मोनू का शक्ल भूल जाते हैं।
सड़क टेढ़ी है या गति ज़्यादा है
छीनकर किसको दे रहे हैं किसको
कैसा लोक किसका तंत्र
जिनको हम चुनते हैं
वो हमारी कहाँ सुनते हैं
बंद का रास्ता, रास्ता बंद तो नहीं
दो का आलू चार सौ का चिप्स हम बनाते हैं
चिप्स में मोनू का शक्ल भूल जाते हैं।
बाज़ार बनावट का
स्वाद और सजावट का
रंग और मिलावट का
आडम्बर और दिखावट का
जेब में रफू लगाना भूल जाते हैं
दो का आलू चार सौ का चिप्स हम बनाते हैं
चिप्स में मोनू का शक्ल भूल जाते हैं।
आज जो बैठे हैं सर्द रातों में सड़कों पर
हमारी देन है आलू टिकता नहीं
संड़ जाता है हफ्ते-महीने में
चिप्स टिकाऊ है
टिकाऊ और बिकाऊ का सम्बन्ध
जो टिकता है वो बिकता है
जो बिकता है वो टिकता नहीं
आलू पर वारंटी कार्ड लगाना भूल जाते हैं
दो का आलू चार सौ का चिप्स हम बनाते हैं
चिप्स में मोनू का शक्ल भूल जाते हैं।