मौन भी मृत्यु है!
मौन भी मृत्यु है!
पहाड़ चुप
लेकिन पहाड़ों पर पेड़
पेड़ो के बीच सरसराती हवा
कभी-कभी धुआं निकलता
बारिश में रोते भी हैं
एक के बगल में
फलता फूलता है दूसरा पहाड़
उत्तर भी देता है
हमारा मुंह चिढाता है पहाड़
पहाड़-पहाड़ को नहीं खाता
औरों को भी देता जीवन
शायद हमारे लिए जिन्दा है पहाड़!
इंसान कुछ बोलता नहीं
या वो बोलता है
कोई सुनता नहीं
या कोई सुनता तो है
पर जबाव नहीं देता
आज भी फैक्ट्रियों में
गोबर जिन्दा है
कंकाल के माफिक
हम कितना देते हैं
बस इतना कि
भर सके अपना पेट
ढँक सके अपना शरीर
इनसे अच्छा नंगा है पहाड़
शायद जिन्दा है पहाड़ !
