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Ranjeet Jha

Abstract Tragedy

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Ranjeet Jha

Abstract Tragedy

कोरोना करप्शन नहीं जानता

कोरोना करप्शन नहीं जानता

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कोरोना

करप्शन नहीं जानता

करप्शन हम करते हैं

बेच देते हैं अपना वोट

बोतल लेकर

बदले में क्या-क्या मिलता है?

स्कूल मिलता है

पर शिक्षा नहीं मिलती

अस्पताल मिलता है

पर इलाज नहीं मिलता

दवा मिलता है

पर स्वास्थ्य नहीं मिलता

सवाल मिलता है

पर जवाब नहीं मिलता

नौकरशाह मिलते है

जन सेवक नहीं मिलता

किससे पूछे?

कौन सा सवाल?

अपने ही अन्दर ढूंढ़ते हैं

एक ही सवाल के हज़ारों जबाव

आधी जनता द्वारा चुनी गई

आधी सरकार

आधा दृढ़

आधा संकल्प

आधा विचलित

आधा दिमाग

आधा योजना

आधा विचार

आधा भूखा

आधा नंगा सरकार

कैसे न मचे?

जनता में हाहाकार

बेबस जनता

लाचार सरकार

सरकार जो

कभी धकियाकर

कभी नकियाकर

कभी बतियाकर

कभी लतियाकर

कभी फटियाकर

कह लेती है अपनी बात

मनवा लेती है अपने मन की

छीन लेती हैं सत्ता

बेबस जनता

लाचार सरकार


कोरोना

करप्शन नहीं जानता

नहीं तो कुछ लेकर

कुछ देकर

कुछ ले-देकर

बचा लेते ज़िन्दगी

कर लेते सौदा

जैसे करते आये हमेशा

कभी टेबल के ऊपर से

कभी टेबल के नीचे से

सौदा कुछ ऐसा

हम भी जिंदा रह सके

हमारे अन्दर कोरोना भी

बिना कुछ बिगाड़े

बिना किसी को मारे

जैसे हमने जिंदा रखा है

सदियों से

अपने अन्दर करप्शन को

अपने जाने के बाद

सीखा देंगे

अगली पीढ़ी को भी

कोरोना के साथ

जीना

जैसे जी रहे है हम आज

करप्शन के साथ

हमें कोरोना ने कम

करप्शन ने ज़्यादा मारा है



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