माँ
माँ
मैं जेब में भरकर पैसे निकला
माँ ने दिये थे
चवन्नी, अठन्नी शायद सिक्के भी
कुछ कागज के नोट भी थे
गाँव के मेले में
बचपन मे
सोचा था आज
बहुत कुछ खरीदूंगा
खाऊँगा पिऊँगा
पर क्या?
ये समझ में नहीं आया
गुब्बारे का दाम पूछा
फिर याद आया
ये तो दो ही मिनट में फूट जाएगा
कुछ देर जलेबी को देखा
झूला, बरफी और भी
बहुत कुछ
पर मन को कुछ नही भाया
पूरा मेला फीका-फीका सा था
शायद दुनिया भी
मैं वापस आ गया मेला घूमकर
बिना कुछ खरीदे
खाये-पीये
जेब से निकाल कर पैसे
मैंने पटक दिया
माँ के पास
और आँचल से मुँह ढ़ँककर
सो गया गोद में माँ के
पूरे तृप्ति के साथ
ऐसे लगा जैसे
पूरी दुनिया मेरी जेब में
आ जाती है।
