गंवार
गंवार
दुकानदार ने बड़ी बेशर्मी से मुझे दुत्कारा है
गंवार कहकर धक्के दे सीढ़ियों से उतारा है,
किसान क्या हूँ?कमीना कहकर पुकारा है
फटे कपड़ों को देख मुझे कहा तू बेचारा है,
पास खड़े किसान-पुत्र साखी ने दिया सहारा है
उसने महाजन को बड़ा जोर से फटकारा है,
हम लोगों के ही पैसों पे तुम मौज करते हो
ब्याज पे ब्याज लगा मूल दस गुना करते हो,
हमारे ही पैसों का ये बंगला-कोठी तुम्हारा है
गर हमसे इतनी घिन है,रोटी खाना छोड़ दो,
ये अनाज हमारे ही हाथों का मैल सारा है
तुम अब इतना इतराना छोड़ दो महाजन,
भारत में अब पढ़े लिखे हुए है,किसान जन,
खेती करना रह गया अब शौक हमारा है
खेती करते है,ये धरा के प्रति प्यार हमारा है,
हम इस धरती को अपनी मां समझते हैं,
इसलिये खेती को मानते कर्तव्य हमारा है
हमे गर्व है,गंवार है,पर नही बेईमान सितारा है,
इज्जत दे,हम आपको सर आंखों पे बिठा लेंगे,
हम किसान रिश्तों को मानते जान से प्यारा है
गंवार कह मुझे क्या,खुद को दे रहे हो गाली,
कोई पूर्वज तो रहा होगा तुम्हारा भू तारा है
गंवार न तो तुम हो,न ही गंवार हम हैं,
हम दोनों इस माटी के जाये है,महाजन,
इस हिसाब से खून का रिश्ता हमारा है।