नफरत
नफरत
नफरत की आग कुछ ऐसी जली,
सब कुछ जल कर खाक हो गया
घर जो मैंने बनाया, जीवन भर की कमाई डालकर,
जलती रही बेवजह, उफ़ तक ना किया,
जैसे कह रही हो तेरी खामोशी का नतीजा हूँ,
आज खाक होती जा रही हूँ,
घर में सहेजी हुई यादें भी जल गयी,
मजहब के नाम पर कैसी लूट मची
वो घर नहीं अरमान था मेरा
दुल्हन सी सजी हुई ,आज किसी बेवा सी खड़ी थी,
मानो रहम कि भीख माँग रही हो
यादों का बसेरा टूट गया,
जो थी कभी दुल्हन सी, आज खंडहर हो गयी
वो ऩफरत की आग नहीं बवंडर था,
तूफान था जो आया और सब बह गया
जिंदगी जो खुशहाल थी, अब खून के आंसू रोता है
अब बस नफरत हैं आँखों में दोनों तरफ
इस नफरत ने घर बांटे, चूल्हे, बांटे
बाँट दिया है देश को,