उसे भूख थी दौलत के नजारों की
उसे भूख थी दौलत के नजारों की


उसे भूख थी दौलत के नजारों की,
जिसकी आदत हुस्न के दीवानों की,
उसे प्यार की पूजा कैसे समझ आती,
बहारों में जिसकी हर रात गुजर जाती।
जफा के रास्ते छोड़ देना ही सही था,
वफा के रास्ते जिसका साथ नहीं था,
नहीं था उसे एहसास ए वफा का साथ,
जिसका कभी खसम-ए-खास था।
वो अपने हुस्न के गरुर पर थी,
कहां उसको प्यार की खबर थी,
थी वो कभी प्यार की मूरत,
थी कभी जिसको मेरी जरुरत।
छोड़ देना ही सही था,
पाना मुकद्दर नहीं था,
ऐसे बेवफा प्यार को जिंदगी में,
गर्दिशों में जिसका साथ नहीं था।