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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

"ओलावृष्टि"

"ओलावृष्टि"

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कुदरत ने कैसा कहर ढाया

फिर से हुआ बहुत बिगाड़ा

फसल कटाई वक्त था,हमारा

ओलावृष्टि से बढ़ा,कर्ज हमारा

आज असमय हुई ओलावृष्टि 

फसलों की खत्म हुई सृष्टि

कुदरत तुम्हे क्या,कहे भला

 बर्बाद,हुई उम्मीदों की सृष्टि

पर यह भी तो साखी सच है,

शबरी ने रामजी से मांगा वर है

इस समय प्रभु बरसाना,पानी

जिससे भू पर गिरे,दाना-पानी

ओर ऐसे गुजरे मेरी जिंदगानी

ओर मुंह से निकले रामवाणी

पर आज के इस दौर में साखी

स्वार्थ भी बढा,बहुत तूफानी

खेत मेड़ न छोड़ते लोग इंसानी

कुछ दाना-पानी पहले छोड़ते,

जानवरो,चिड़ियों के लिये,जानी

आज हम हुए इतने अंधे,गुमानी

रब समय-समय पर देता,सजा

जब-जब काम करते,शैतानी

पर मेरे खुदा थोड़ा,रहम कर

तू करीम है,तू है,पाक सुलेमानी

हम किसान बहुत साफ मन है

जैसे होता है,निर्मल गंगा पानी

हमारे कितनी ही समस्याएं हो,

हम कभी न छोड़ेंगे ईमानदारी

भूखे रहे,या टूटे सांसे हमारी।


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