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Pranjali Kalbende

Tragedy

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Pranjali Kalbende

Tragedy

नारी हूं मैं...

नारी हूं मैं...

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हाथों की लकीरों में 

ढूंढती हूं जिंदगी

नसीब का लिखा

सुना है बसता वहां...

पलपल की घुटन

अनजान निगाहों से

अनदेखा कर देती हूं

जमाने के डर से....

नारी हूं मैं...

दबे स्वर मे कहती हूं

पता नही क्यों

गुमनाम सी हूं मैं.....

चंद पक्तियों मे

दास्तान ना हो पायेगी

फुरसत से सुनायेंगे कभी

आवाज हमारी....।



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