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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Inspirational

"भरोसा"

"भरोसा"

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भरोसा था, हमें चंद लोगों पर

विश्वास था, हमें जिन लोगों पर

उन्होंने ही हमें अंधेरा दे दिया,

विश्वास था, जिन रोशनियों पर

जिन्हें हम अपना समझते थे

उन्होंने फेंका, शीशे पर पत्थर

हमें ज़माने में अक्ल आई तब

साफ ठौर पर लगी जब ठोकर

विश्वासघात हुआ, अपने ही घर

घर की ईंट ने तोड़ दिया पत्थर

अपने ही घर से हुए यूं बेघर

जैसे हम है, कोई छुआछूत नर

भरोसा था, हमें जिन लोगों पर

उन्होंने ही धोखा दिया जी भर

अब से कस लिया कसौटी पर

न करूंगा भरोसा तनिक भर

खुद पर करूंगा, यकीं नभ भर

किसे नहीं दूंगा, राज जिंदगी का

चाहे अपना हो, या कोई गैर पर   

अपने विश्वास को करूंगा अटल

चाहे कोई कितना दे गम समंदर

न रोऊंगा, न विश्वास को खोऊंगा

अपने भीतर बसाऊंगा वो शहर

जिसमें में होगा स्व-विश्वास घर

लोगों पर भरोसा करने के बजाये

बालाजी पर करूंगा यकीं जी भर

उनकी कृपा से अनायास तैरेगा,

भव-सागर में साखी रूपी पत्थर

भरोसा बस, यहाँ बालाजी पर कर

वो ही मिटाएंगे अथाह तम, भीतर



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