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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

व्यर्थ गरमी

व्यर्थ गरमी

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आ गई है,बहुत ज्यादा गरमी

दिल में रखो,अब आप नरमी

हर ख्वाब आपका पूरा होगा,

नम्रता की पहने,पहले वर्दी


दिमाग को रखो,आप ठंडा

त्याग भी दो व्यर्थ की गरमी

क्या,फ़लक और क्या जमीं

जो होते है,सदैव धैर्य,धनी


छोड़ते देते,व्यर्थ गहमागहमी

फिर अंगारों पर होती नरमी

जो दिमाग में रखते है,सर्दी

भीतर रखते,जो कर्म गर्मी


वो पाते फिर सफलता इतनी

सागर में लहरे नही जितनी

त्याग भी दो,व्यर्थ की गरमी

स्नेह के साथ रहो,आप सभी


प्रेम के लिये यह दुनिया बनी

लड़ने के लिये नही ज़मीं बनी

वो बनते है,खिली हुई कली

जो विन्रमता की होते,जमीं


चोर जेब मे जो सदा रखते है,

सहनशीलता कोहिनूर चवन्नी

वो नही रोते है,जीवन मे कभी

त्याग भी दो व्यर्थ की गरमी


जीवन मे न होगी कोई कमी

जिंदगी में होगी,फिर रोशनी

घटा दे आप व्यर्थ की चर्बी

क्रोध की न सुलगाये अग्नि


जो त्याग दे,गर व्यर्थ गरमी

बनेगी स्वर्ग,फिर यह धरती

शीतल बने और शीतल बोले

फिर बरसेगी,सुधा वर्षा घनी

दिल से विजय



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