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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

व्यर्थ गरमी

व्यर्थ गरमी

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आ गई है, अब यह गर्मी

हृदय में रखो, अब नरमी

हर ख्वाब तेरा पूरा होगा

नम्रता की पहन ले, वर्दी


दिमाग को ठंडा रखो,

त्याग दो व्यर्थ की गरमी

क्या, फ़लक, क्या जमीं

जो रखते है, सदैव धैर्य,


छोड़ते देते, गहमागहमी

उन अंगार पर होती नरमी

जो दिमाग में रखते, सर्दी

भीतर रखते, जो कर्म गर्मी


वो पाते सफलता इतनी

सागर में लहरे न जितनी

त्याग दो, व्यर्थ की गरमी

रहो सब के साथ स्नेह से,


प्रेम के लिये दुनिया बनी

लड़ने के लिये न भू बनी

वो बनते खिली हुई कली

जो विन्रमता की होते, जमीं


चोर जेब मे सदैव रखते 

जो सहनशीलता चवन्नी

वो न रोते जीवन मे कभी

त्याग दो व्यर्थ की गरमी


जीवन मे न होगी कमी

जिंदगी में होगी रोशनी

घटा दे आप व्यर्थ, चर्बी

क्रोध की न जलाये अग्नि

जो त्याग दे, गर व्यर्थ गर्मी

बनेगी स्वर्ग, फिर यह धरती।


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