चकित हु मै
चकित हु मै
जनकनन्दिनी, राजदुलारी
राजवधू रामप्रिया थी
सीता महान नारी
पतिधर्म निभाने उसने हेतु
वनगमन स्वीकार किया
प्रतिकार स्वरूप अग्निपरीक्षा का
उसे उपहार मिला
चकित हूँ मै कि
क्यों न तब किसी कौशल्या, सुमित्रा कैकयी ने इस बात का प्रतिरोध किया...?
परम् विद्वान होकर भी जब तुलसी ने पशु,गंवार,शुद्र की श्रेणी में
नारी को लाकर खड़ा किया
चकित हूँ मै कि
तब क्यों न किसी स्त्री ने
इस अनुचित बात का विरोध किया..?
अहिल्या को जब उसके
अपने ही पति ने
चरित्रारोपण करके पाषाणवत किया
चकित हूँ मैं कि
क्यों न तब किसी स्त्री ने इस अन्याय का विरोध किया..?
मनुस्मृति में समस्त वर्जनाएं
नारी पर ही लगाई
तब क्यों न कोई स्त्री
विरोध में खड़ी दी दिखाई
चकित हूँ मैं कि क्यूँ स्त्रियों ने
ये सब विरोधाभास अंगीकार किया..?
बालपन से यौवन तक जिस मोहन ने
राधा का उपभोग विहार किया
फिर अन्य स्त्रियों सङ्ग विवाह कर
राधा को अधर में त्याग दिया
चकित हूँ मैं
कि क्यों तब राधा ने
इस बात का न प्रतिरोध किया..?
यदि त्याग ही करना था तो
क्यों सिद्धार्थ ने यशोधरा से विवाह किया
अबोध शिशु संग क्यों उसे परित्यक्ता का नाम दिया
चकित हूँ मैं
कि क्यों न तब उस समाज ने इस घटना का विरोध किया..?
क्यों सारे नियम कायदे कानून
स्त्रियों के खाते में ही लिखे जाते हैं
कितने पाप कितने अत्याचार करके भी ये पुरुष साफ बच के निकल जाते हैं...
बड़े बड़े महारथी,धुरंधर पाँच पति
सब मूक बधिर बन भरी सभा में बैठे रहे
नत नयनों से निज भार्या का चीरहरण होता देखते रहे
चकित हूँ मैं कि क्यों न तब किसी कुंती, किसी गांधारी ने या स्वयं पांचाली ने
इस दुराचार का विरोध किया..?
आज भी कितनी सीतायें,
कितनी द्रोपदी राधा,अहिल्याएँ
दोषी,प्रताड़ित की जाती हैं
तब तो कलयुग न था जो
आज घोर कलयुग की बात बता
हर गलती उसके मत्थे मढ़ दी जाती है..?
बात बस इतनी सी है
एक स्त्री को अबला समझ
उन पुरुषों ने निज दुर्बलता(नपुंसकता) का ही तो प्रदर्शन किया..
गलती उस स्त्री की भी है
जो उसने स्वयं को असहाय निर्बल मान लिया
क्यों न उसने सिंह वाहिनी बन
इन महिषासुरों का मर्दन किया..??
