मन को बस तेरी ही आस
मन को बस तेरी ही आस
यह रास्ता चल रहा है
मंजिल को अपनी पीछे छोड़कर
क्या करे यह भी
मजबूर है
रुक नहीं सकता
ठहर नहीं सकता
चलना ही इसकी नियति है
इसकी किस्मत है
इसके जीवन के नक्शे की
रूपरेखा है
कदम जब थकेंगे तो
सुस्ता लेगा पल दो पल
किसी पड़ाव पर लेकिन
खुद को फिर उठाकर
अपने सामान को अपने कन्धे पे
लादकर
खुश होकर तो
कभी रोकर
अकेला तो कभी काफिले को
साथ लेकर
आसमान की तरफ तो
कभी जमीन की ओर
देखकर
नजरें घुमाकर
चारों तरफ भी देखकर
कोई आवाज दे तो
उसके इंतजार में अपने
कदम कुछ देर के लिए
रोककर
दिल में यादों के फूल
खिलाकर
शूल जो किसी की
कटु वाणी के
उन्हें तिनका तिनका बीनकर
अपने जिस्म के लिबास से
हटाकर
प्रेम का दीया
मन मंदिर में रोशन कर
खुद के संग
एक दीवाली मनाकर
कभी दिल में आये तो
धूल को अपने पैरो से उड़ाकर
मिट्टी में सनकर
एक त्योहार रंगों का
उमंगों का
होली का मनाकर
समय की डोर को कभी
कसकर तो कभी
ढीला छोड़कर
दर्द भरे तो
कभी मस्ती भरे
गीत एक राहगीर की
तरह ही गुनगुनाकर
कुछ भी मंजा हुआ नहीं
सधा हुआ नहीं
नपा हुआ नहीं
बस हर क्रियाकलाप
एक सामान्य प्राणी की
तरह ही जीते हुए
वादियों में
जंगलों में
खेतों में
उसकी पगडंडियों में
पहाड़ियों के बीच से
फूटते झरनों में
नदियों में
तालाबों में
कुंओं में
जलप्रपातों में
आसमान में
सितारों में
चांद में
सूरज में
प्रकृति के सारे नजारों में
कहीं भी यह कदम बढ़े
कहीं भी यह मन चले
कहीं भी यह दिल एक पंछी सा
उड़े
उसे बस एक ही बेचैनी
उसकी एक ही तलाश
उसकी एक ही ख्वाहिश
जो हमेशा रहेगी
अधूरी
कभी हो सकेगी न
पूरी
मन प्यासा है
मन बैरागी
मन को बस तेरी ही
आस है
तेरी ही हर सू तलाश है
तू आ जा
कहीं से एक बदलते
मौसम की तरह
एक बारिश की तरह
एक फूलों की बहार की
तरह
मेरी रूह में समा जा
खुदा के किसी अक्स
की तरह
मैं कहीं न भटकूं
तेरी तलाश मुझ तक सिमट
आये
तुझे पा सकूं जब खुद को
ढूंढूं
न रास्ते नापूं
न मंजिल की फिक्र हो
न हसीन मंजरों की
चाहत हो
जब कभी अपनी आंखें खोलूं और
तुझे देखना चाहूं तो
खुद के मन का दरवाजा
जो खोलूं तो
तेरा दीदार हो जाये
तेरी नजरों के
तेज से मेरा श्रृंगार हो
जाये
तेरे हाथ से झड़ती
भभूत से मेरा स्नान हो
जाये
मैं सब भूल जाऊं
बस एक तेरा नाम ही
प्रभु की याद की तरह
मुझे स्मरण हो जाये।