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मिली साहा

Abstract Tragedy

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मिली साहा

Abstract Tragedy

कल एक झलक जिंदगी को देखा

कल एक झलक जिंदगी को देखा

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कल फ़ुरसत में, एक झलक मैंने, ज़िन्दगी को देखा,

पुकार रही थी जहाँ से मुझे, था एक धुँधला झरोखा,

समझ ना आया उस पल कि वो मुझसे दूर खड़ी थी,

या मैं उससे, या हो रहा था मेरी नज़रों को ही धोखा।


धीरे-धीरे उसकी ओर, जब अपने कदमों को बढ़ाया,

दो कदम बढ़ाते ही उसको खुद से और भी दूर पाया,

आवाज़ देकर पूछा जब उससे क्या मुझसे है नाराज़,

तो सुनकर भी मेरी बातों को अनसुना सा कर दिया।


मैंने फिर पूछा ए ज़िंदगी मुझसे क्यों भाग रही है दूर,

पास आकर जरा बता तो आखिर क्या है मेरा कसूर,

ज़िंदगी बोली मैंने तुझे नहीं छोड़ा तू ही भूला है मुझे,

ए नादान क्या जानता नहीं तू, यही तो है मेरा दस्तूर।


जब जीना था तुझको, तू केवल भाग रहा था मुझसे,

मुस्कुराना छोड़कर तू, दर्द के ही गढ़ रहा था किस्से,

मैंने तो कई बार चाहा था तुझे गले लगाना, सहलाना,

पर तू ही तो हर बार अनदेखा कर निकल गया आगे।


तेरी आँखों का भ्रम था, मैं नहीं थी कभी तुझसे दूर,

तेरा साथ छोड़ने को, मुझे तूने ही किया था मजबूर,

कैद था, नकारात्मक विचारों के, एक ऐसे पिंजरे में,

जहाँ तू खुद के ही वजूद को खुद से कर रहा था दूर।


नाराज़ न हो ए जिंदगी मानता हूँ, है मेरी ही ये खता,

हार चुका हूँ हर तरफ़ से, अब कोई रास्ता तू ही बता

आकर बस एक बार तो तू लगा ले मुझे प्यार से गले,

चाहता हूँ जीना फिर से मैं दिल की है अब यही रज़ा।


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