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ritesh deo

Tragedy

4  

ritesh deo

Tragedy

मै कमजोर नही

मै कमजोर नही

2 mins
342


 हाँ: मैं कोमल हूँ 


अबला जीवन , 

हाय !

तेरी यही कहानी 

आँचल में है दूध ....

आँखों में है पानी ....

भाव करुणाप्रधान  

पर मुझे बड़ी हैरानी 


कि दे सकती जो 

इक ज़िन्दगी को जन्म....

हाँ, दे सकती जो 

इक ज़िन्दगी को जन्म .......

किस कारण ?

किस लिहाज से ?

वो हैं कम 


राम लड़े ; सेना संग 

रावण ; सीता से हारा 

अभिमानी के अभिमान को 

अशोक-वाटिका में मारा 


खिलजी की भी वासना

पद्मावती के आगे हारी 

रक्षा ,स्वाभिमान की 

ऐसे करती है नारी 


कहानी ; आत्मत्राण की 

अस्तित्व की : पहचान की 

गरिमा की : सम्मान की 

समझाती :

इक बात यही 


माना हूँ ; मैं कोमल 

समझो : पर कमजोर नहीं 


बहते आँसू मेरे  

भावों की अभिव्यक्ति 

स्वयं ;

टूट कर जुड़ पाना 

है मेरी ही तो शक्ति 


दुःख ,तब होता 

होती , भीतर पीड़ा 

रूढ़िवादी सोच 

जब उठाती ; मेरा बीड़ा 


मान ; मुझे कंजक

मेरे पैरों को धुलाते

कन्या-जन्म पर अक्सर 

क्यों इतना फिर घबराते 


वास्तविकता :आज की

तस्वीर :दोहरे समाज की 

“बेटी बचायो “ के ये नारे 

ऊँचे-ऊँचे माँ के जयकारे

 

छिपे भेड़िये ; 

मानव के वेश में 

भ्रूणहत्या करे आवेश में 


रो कर ; अपनी कोख से माँ 

न आना लाडो; इस देश में

न आना बस ;इस देश में 


द्रौपदी के खुले केश 

चरमसीमा पर अधर्म 

पति दांव माने ;

तो देवर को क्या शर्म 


प्रतिज्ञा बनी अहम 

सम्मान स्त्री का गौण 

शस्त्रधारी ,धर्मज्ञाता 

सब थे वहां मौन 

न बोले 

गंगापुत्र 

न बोले 

गुरु द्रौण 


कैसा : ये पुरुषत्व

कैसा : ये परमार्थ 

वासना भरा मन 

केवल जाने स्वार्थ 


द्रौपदी की उलझन 

कहता आहत मन 


स्वयं को मैं :कहाँ ले जाऊँ ???

किस लिए : मैं क्यों छिप जाऊँ ???

आज घर-घर दुर्योधन 

आज जन-जन दुशासन 

इतने गोविन्द कहाँ से लाऊँ ???

इतने कृष्ण कहाँ से लाऊँ ????


वक़्त बदला 

न बदला ये समाज 

वही द्रौपदी कल 

वही मलाला आज 


सड़क गली ,चौराहें 

बस 

घूरती -गन्दी निगाहें 

इंसानियत की उड़ाते  

बस यहाँ; हम खिल्ली  

जाकर ;पूछो निर्भया से  

कितनी दिलवालों की दिल्ली ??


सोच : दीमक जैसी 

भला कमी : मुझ में कैसी 

मैं भक्ति :मैं शक्ति 

मैं प्रकृति :मैं मुक्ति 


सृष्टि के सृजन की 

बंधी मुझसे ही डोर 


माना हूँ ; मैं कोमल 

पर नहीं : मैं कमजोर 


नहीं : मैं कमजोर।


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