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Phool Singh

Tragedy

4  

Phool Singh

Tragedy

चीर हरण-महारानी द्रौपदी

चीर हरण-महारानी द्रौपदी

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बड़ी कठिनाइयों से प्राप्त राज्य

झट से दांव लगाते क्यूं 

विचार-विमर्श पहले क्यूं न करते 

कौरव-पांडव पाशों का खेल रचाते क्यूं।।


घृणित कर्म है ध्रुत कीड़ा एक 

न ध्यान इस पर लगाते क्यूं

नशा, चोरी-चकारी सा दंड भयानक

न स्मरण में कृष्ण को लाते क्यूं।।


धन-दौलत, राजसत्ता हारे 

व्यक्तित्व छोटे भाइयों का हारे क्यूं 

रक्त संबंध था उनसे उसका

मान रिश्तों आज गवांते क्यूं।।


दुर्योधन ने शकुनि खिलाए

आज कृष्ण को साथ न लाएं क्यूं

हर परिस्थिति में जो साथ निभाए

उन्हें ऐसे समय बिसराएं क्यूं।।


पति-पत्नी का पवित्र रिश्ता

कीड़ा में द्रौपदी पर दांव लगवाए क्यूं 

एक नारी को वस्तु बनाया

इस घृणित कर्म से युधिष्ठिर को न रोकते

 क्यूं।।


निर्वस्त्र, निर्लज्ज सी वो खड़ी थी

कोई राजवधु की लाज न बचाएं क्यूं 

समा गए न धरती में सब 

बैठे देख रहे इस कृत क्यूं।।


द्रोण,भीष्म, राजा गांधार चुप्पी साधे

सारे आवाज विरोध की न उठाते क्यूं 

रोती-बिलखती कुलवधु रहती 

उन्हें सुनाई न देती उसकी करहाहट क्यूं।।


सगे-संबंधी रिश्तेदार सारे

पर इस कलंक को शीश सजाएं क्यूं 

रक्षा के वचन से बंधे थे जो 

बैठे वहां पर मौन थे क्यूं।।


एक से बढ़कर एक वीर बैठा था

सन्नाटा सभा में फिर भी क्यूं 

भीष्म,द्रोण से अजय योद्धा

फिर भी कोई न कुछ कहता क्यूं।।


बाल पकड़कर खींच के लाता

रोकता न उसको कोई क्यूं 

नीचे गर्दन करके बैठे रहे सब

कोई मृत्यु न दुशासन को देता क्यूं।।


गिरधर-कृष्णा लबों पर उसके 

वही बचाते उसको यूं 

खींचते-खींचते थक गए साड़ी

लेकिन खींचना पाते पूरी क्यूं।।


अन्न का दोष है सारे कहते

इसलिए कुछ न बोले यूं

गुलाम से बढ़कर होती जिंदगी

लोग बात न समझते अब तक क्यूं।।


बुलाया नही था धर्मराज ने 

इसलिए कृष्णा ध्रुत कीड़ा में न आए यूं

एक धागे का कर्ज बहन का

एक भाई ने उसको चुकाया यूं।।


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