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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

शक्लें

शक्लें

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सारे शहर नुक्कड़ गली जकड़ चुके है कर्ण के रथ के पहिए की तरह

बाजार की दुकानों ने आँखों पर मोटे मोटे चश्मे चढ़ा लिए


बदल गया नजरिया तो खास लोग भी आम हो गये

सपनों की राख लेकर किसी के सपनों की रंगोली बनाने लिए


अपनी दुनिया करने रंगीन दूसरों की सदियाँ वीरान कर दी

अलफाजों के खूबसूरत वादियों में शामिल हो गए हम आजमाने के लिए


उम्रदराज नहीं होते हैं जख्म, ताउम्र साथ निभाते हैं

सिर्फ शक्लें बदल दी जाती है नयी पीढ़ियों को सहने के लिए


मामा भांजे ने मचाई तबाही गवाही है इतिहास की

कुरुक्षेत्र सा दिख रहा है हाल यहाँ जंग-ए-आजादी के लिए


महामारी के कहर में 'नालन्दा,' महंगाई का शेजवान तड़का

गिरती अर्थव्यवस्था आम आदमी का तेल निकालने के लिए



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