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Abasaheb Mhaske

Tragedy

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Abasaheb Mhaske

Tragedy

दोस्त ! जब से वो मनहूस खबर सुनी

दोस्त ! जब से वो मनहूस खबर सुनी

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दोस्त ! जब से वो मनहूस खबर सुनी

लगती हैं झूठ अभी भी ,शायद वहम हो

पागल मन को कैसे समजाऊं ?

जानेवाले लौटके वापस नहीं आते कभी


दोस्त ! तुम्हारे बारे में सोचता रहता हूँ

उस दिन रात में सोते समय क्या सोचा होगा

नहीं पता होगा यह हमारी आखरी रात

कल का सूरज , दिन मेरे लिए नहीं होगा


दोस्त ! तुम्हे जितना भुलना चाहूं

उतना ही याद आते हो ,आओगे

कहीं से आवाज दोगे हमेशा की तरह

फिर अजब सी ख़ामोशी , बेचैनी, भारी मन


दोस्त ! क्या हाल होगा घर में तुम्हारे

सोच के घबराता हूँ , उन्हें दुःख सहने की

शक्ति प्रदान करे यही ईश्वर से प्रार्थना

दुःख की धार कम होने को वक्त तो लगता ही है.



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