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Minal Aggarwal

Tragedy

4  

Minal Aggarwal

Tragedy

कांटों का जंगल

कांटों का जंगल

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उसे 

दूर से 

आता देख 

सब दौड़कर 

छिपने की जगह 

तलाशते हैं 

वह एक जीता जागता 

चलता फिरता 

सांस लेता 


कांटों का जंगल है 

खुद जीना चाहता है पर 

दूसरों को कष्ट पहुंचाता है 

खुद सुख का आंचल ओढ़ता है 

दूसरों को नुकीले कांटे चुभाता है 


खुद फूलों के उपवन की उसे 

तलाश है 

दूसरों के दिलों में चुन चुनकर 

शूल के विषैले बीज बोता है 

उसकी तरफ 

जब भी देखो 

वह कांटों के तीर ही


बरसाता दिखता है 

हरे भरे सावन को भी 

एक भयंकर अग्निकांड सा

झूलताये फिरता है 

एक फूल उगना तो दूर 

कभी उसके जाल में आकर 

फंसा भी नहीं 


खरपतवार सी है फितरत उसकी 

पकी पकाई 

लहलहाती

कटने योग्य फसल कर देता 

बर्बाद 

जिस राह से भी गुजरे 

वहां अनगिनत कांटे बिखेरता 


चलता है 

जो उस राह पर फिर चले 

उसके पांवों में तो बस 

कांटा ही चुभता है।


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