तेरे मन के अहाते में
तेरे मन के अहाते में
तेरे मन के
अहाते में
एक सर्पिनी
कुंडली मारे
बैठी है
तेरे मुख से फिर
अमृत की वर्षा कैसे
होगी
इस संसार की हर वस्तु फिर
तुझे विषैली लगेगी
जब तेरे शरीर की
नस नस में
न मां का दूध
न पिता के त्याग का
लहू प्रवाहित हो रहा
बह रहा तो
बस एक जहर उगलता
ज्वालामुखी का
विष के अंगारे उगलता
दरिया
एक मदारी सा जो
तू न नाचा
उस विषकन्या के
इशारे पर
उसकी झूठी मोहब्बत के
हरदम तेरे जिस्म को कसते
कच्चे, चिकने और फिसलते धागे पर
वहीं तेरे जीवन का अंत है
तेरी मौत है
तू कभी एक भला मानस था पर
जाने अंजाने
फंस गया
एक ढोंगी जादूगरनी के
काले जादू के
विष भरे
जहर उफनते
नागों से उड़ते
काले, रूखे और बेजान
केशों के
जालों में।