रिश्तों का ज़हर
रिश्तों का ज़हर
कौन सा दुख है जो मैंने उठाया नहीं
कौन सा रिश्ता है जिसने मुझे आजमाया नहीं
मैं करती रहीं जिन लोगों पर यकीन
उन्होंने मेरी लाश तक को दफनाया नहीं
मैं ज़िंदगी भर जिसके प्यार को तरसती रही
उसने मुझे कभी अपनाया नहीं
मेरे आंखों में आंसू उसके नाम बहते रहे
उसने आगोश में मुझे समाया नहीं।

