मेरे देश की धरती
मेरे देश की धरती
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ये चंद पंक्तियां प्रवासियों को ही लक्ष्य कर लिखी हैं
मेरे देश की धरती करे पुकार आजा मेरे राजकुमार।
जिसका अन्न खाकर पले बढ़े, जिसकी नदियों संग हिले मिले ।
बाग बगीचे वन निर्जन , संगी साथी, घर आंगन तेरी राह तके ।
रोती गय्या, रोती मैय्या, अब तो बहना के भी नयन थके ।
कब तक तू इस मृगमारीचिका के पीछे-पीछे भागेगा ।
आयेगी जब कोई विभीषिका तभी क्या तू फिर से जागेगा ???
मेरे देश की धरती करे पुकार आजा मेरे राजकुमार।