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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

गुम

गुम

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अपने ही घर में गुम 

अपनी ही खोज में भटकता रहा 

इस कमरे से उस कमरे तक 

द्वार आ जाते हैं, दीवारें आ जाती हैं 

किन्तु खुद को नहीं ढूंढ पाता मैं 

मैं अब मैं न रहा, न जाने कितनों में बट गया हूँ कितने नाम से 

अपने टूटे टुकड़ों को जोड़ने की कोशिश में 

नाकाम होता हूँ हर बार 

गलत हिस्से जुड़ जाते हैं बार बार 

और मैं असमर्थ रहता हूं अपने को पाने में 



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