सिसकते आँसू
सिसकते आँसू
सूनी सूनी आँखों में संजो रहा है सपने
जो बिखर गए हैं मोती जैसे
समेट रहा है जिसको,
सिसकते आँसुओं ने जब पूछा पलको से
आज क्यो नहीं रोका मुझको,
आज कैसे बाहर आ गया मैं,
पलको ने कहा,
आज सब्र का बाँध टूट गया।
मुझे न तो माँ का आंचल मिला,
न ही पिता का प्यार।
शराब की बोतल बनी मेरे खिलौने,
बचपन ही में बचपन छिन गया।