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Dr.Pratik Prabhakar

Tragedy

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Dr.Pratik Prabhakar

Tragedy

संवेदनाओं का अकाल

संवेदनाओं का अकाल

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संवेदनाओं का है जग में अकाल

जग जा मनुज नेत्र खोलेंगे त्रिकाल


संबंधों में आती कैसी अब दुराई है

मेघ आंखों से बहाते मात-पिता के 

देख इनको मानवता भी शर्मायी है

ऐसे मनुज न बन ,जो है कंगाल

संवेदनाओं का है जग में अकाल।


गिरते है तो हमें उठता कोई नहीं

हँसते वो इंसानियत भी सोई रही

लेते फ़ोन से जो तस्वीरें वीडियो

अब शर्माकर झुका अपना भाल।

संवेदनाओं का है जग में अकाल।


सांस की हवा कहीं पानी है गंदा

तेरा न खत्म हो आरोप का धंधा

याद रख हिसाब होता सबका ही

आज चाहे खुशफहमी ले तू पाल

संवेदनाओं का जग में है अकाल


वक़्त पर कोई भी पहचानता नहीं

मानव धर्म कोई भी मानता नही

याद रख दिन देखने सबको यही

आज कोई खड़ा,कल तेरा हो हाल

संवेदनाओं का जग में है अकाल।


उजड़े चमन देख कर हँसनेवाले

तू कभी बन के तो देख रखवाले

जो अक्षुण्ण खुशी पाओगे जग में

सफल पाना होगा मानव का खाल

संवेदनाओं का जग में है अकाल।

जग जा मनुज नेत्र खोलेंगे त्रिकाल!


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