शर्मिंदगी हमें होती रही
शर्मिंदगी हमें होती रही
रौनक चली जाती है हुस्न ए वफा की बेवफाई में,
कुछ गलतियां चाहकर भी नहीं की जाती रुसवाई में,
जो चाहत का सौदा करते हैं वो उम्र भर रोते हैं,
बेवफाई का नाम ही बुरा जो करते बेवफा होते है।
हमने प्यार किया पूजा की उम्र भर निभाने से,
वो बीच राह छोड़ गये जो अच्छा मिल जाने से,
मालूम नहीं उनको दौलत मिली या प्यार मिला,
जो लौटे नहीं फिर हमारे इंतजार के फसाने में।
उनकी गलतियां मुझे शर्मिंदा करती रही,
उनको समझाने में माफियां होती रही,
वो वक्त से पहले न समझी न लौटी कभी,
मतलब ए परस्त वो शर्मिंदगी देती रही।
गलतियां वो करती रही,
शर्मिंदगी हमें होती रही,
फिर भी चाहा दिल से,
दुश्वारियां हमें होती रही।
एक दिन एहसास होगा,
जब दिल से प्यार होगा
वो तड़प उठेंगे पाने को,
कोई जब पास न होगा।
सच तो यह कि वो कभी प्यार के काबिल ही न रहे,
उनके हुस्न की दौलत से हम कभी वाकिफ न रहे,
वो हमें रुसवा करते रहे और गुमराह करते रहे,
काबिल हम नहीं दौलत लुटाकर हुस्न लूटने वाले रहे।
हमने कई बार पूछा कि तुम खुश हो,
वो खुशी पूछने गैरों संग जाते रहे,
हमसे न पूछा कभी कि तुम खुश हो,
चाहत का सौदा करके शर्मिंदा होते रहे।
कई बार समझाया कि
अभी हम खड़े हैं तुम्हारे लिये,
गलतियां माफ होंगी,
गिर गये हो उठा लूं तुम्हारे लिये।
