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Gurudeen Verma

Tragedy Others

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Gurudeen Verma

Tragedy Others

अपना मुझको नहीं समझा गया

अपना मुझको नहीं समझा गया

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मैं बन नहीं सकी शोभा घर की, मुझको अपना नहीं समझा गया।

मैं सज नहीं सकी दुल्हन की तरह, कोई अरमां मुझे नहीं समझा गया।।

मैं बन नहीं सकी शोभा----------।।


माथे की बनकर मैं बिन्दी, मैं शान रही मस्तक की सदा।

अब लगा लिया दिल सौतन से, सम्मान मेरा नहीं समझा गया।।

मैं बन नहीं सकी शोभा----------।।


अब दोष दूं औरों को मैं क्यों, बदनाम किया मुझे अपनों ने।

अब खास नहीं हूँ मैं यहाँ पर , गौरव मुझको नहीं समझा गया।।

मैं बन नहीं सकी शोभा------------।।


रह गई हूँ मैं सिर्फ मात्रभाषा, इस मेरे वतन हिन्दुस्तां में।

कभी ख्वाब रही थी मैं सबकी, अब ताब मेरा नहीं समझा गया।।

मैं बन नहीं सकी शोभा------------।।


हट गई माथे पर बिन्दी अब, और बन विधवा मैं हिन्दी।

सबने की है मेरी हिन्दी, मुझे सबला कभी नहीं समझा गया।।

मैं बन नहीं सकी शोभा-----------।।



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