अपना मुझको नहीं समझा गया
अपना मुझको नहीं समझा गया
मैं बन नहीं सकी शोभा घर की, मुझको अपना नहीं समझा गया।
मैं सज नहीं सकी दुल्हन की तरह, कोई अरमां मुझे नहीं समझा गया।।
मैं बन नहीं सकी शोभा----------।।
माथे की बनकर मैं बिन्दी, मैं शान रही मस्तक की सदा।
अब लगा लिया दिल सौतन से, सम्मान मेरा नहीं समझा गया।।
मैं बन नहीं सकी शोभा----------।।
अब दोष दूं औरों को मैं क्यों, बदनाम किया मुझे अपनों ने।
अब खास नहीं हूँ मैं यहाँ पर , गौरव मुझको नहीं समझा गया।।
मैं बन नहीं सकी शोभा------------।।
रह गई हूँ मैं सिर्फ मात्रभाषा, इस मेरे वतन हिन्दुस्तां में।
कभी ख्वाब रही थी मैं सबकी, अब ताब मेरा नहीं समझा गया।।
मैं बन नहीं सकी शोभा------------।।
हट गई माथे पर बिन्दी अब, और बन विधवा मैं हिन्दी।
सबने की है मेरी हिन्दी, मुझे सबला कभी नहीं समझा गया।।
मैं बन नहीं सकी शोभा-----------।।