ज़िंदगी
ज़िंदगी
ज़िंदगी ज़िंदगी से खफा हो रही
सांस जिस्म से अब जुदा हो रही
किसी और के घर को रौशन करने
तुम मेरा ही प्रिय घर तिमिर कर चली
मैंने तो प्रिय तुमको था समझा अपना
मैंने तो प्रिय तुमको था माना अपना
तुम ही प्रिय मुझको छल कर चली
खुशियां जीवन की सब अलविदा हो रही
ज़िंदगी ज़िंदगी से खफा हो रही...!.....
इतने आकर करीब फिर दूर हो चली
तुम मुझे आज़ प्रिय भूलकर हो चली
किसी और के नाम की मेहंदी रचाकर
किसी और के नाम से मांग सजाकर
तुम मेरा नाम प्रिय भूलकर हो चली
शेष थी जो वो अब रस्म अदा हो रही
ज़िंदगी ज़िंदगी से खफा हो रही..!!
जो दिये थे वचन मुझको तुमने कभी
उन्हीं वचनों को तोड़कर तुम चली
अब ना होगा कभी प्रेम हमको पुनः
साथ जो प्रिय मेरा छोड़कर तुम चली
स्वप्न देखे थे जिसके संग जीवन के
हमने बैठकर डोली में वो विदा हो रही
ज़िंदगी ज़िंदगी से खफा हो रही
सांस जिस्म से अब जुदा हो रही.

