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Gurudeen Verma

Tragedy

4  

Gurudeen Verma

Tragedy

नाचीज मुझको बना दिया

नाचीज मुझको बना दिया

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नाहक समझकर अपनों ने, नाचीज बना दिया मुझको।

सौतन से लगाकर दिल सबने, बेघर बना दिया मुझको।।

नाहक समझकर अपनों ने--------।।


क्यों दोष फिरंगियों को मैं दूँ ,अपनों ने किया है सितम।

किससे मैं अपनी पीड़ा कहूँ, बेजुबां बना दिया मुझको।।

नाहक समझकर अपनों ने--------।।


कभी होती थी पूजा मेरी, मैं जान थी यहाँ हर दिल की।

नहीं माना गया मुझको सबला,अबला बना दिया मुझको।।

नाहक समझकर अपनों ने--------।।


कभी आन थी हिंदुस्तान की, पहचान थी हिंदुस्तान की।

अब कौन करें रक्षा मेरी, बेख्वाब बना दिया मुझको।।

नाहक समझकर अपनों ने--------।।


रह गई अब मैं मात्रभाषा, इंग्लिश की आई बहार जो।

मैं ताज बनूँ कैसे सिर का, बेताज बना दिया मुझको।।

नाहक समझकर अपनों ने--------।।


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