आशियाना
आशियाना
हमारा घर यहाँ पर है मगर जाने कहाँ जायें।
हमें जो चाहिये आराम फरमाने कहाँ जायें।
गजब का शोर रहता है दिनों में और रातों में।
हमारे कान दुखते है कि हम सोने कहाँ जायें।
भला है क्यों दिलों की बात करने पर ये पाबन्दी।
जिगर में गीत आते हैँ उन्हें गाने कहाँ जायें।
नहीं चाहा हमारे अश्क दिख सबको यहाँ जायें।
छुपाने हैँ हमें आँसू कि हम रोने कहाँ जायें।
कि कोशिश की बहुत हमने उसे ये बात समझायें।
समझना हो जिसे ना कुछ कि समझाने कहाँ जायें।
