प्रेम नगर
प्रेम नगर
अनजान नगर में आया हूँ मैं,
नगर के नाम का पता नहीं।
बेबस हो कर ढूंढता हूँ उसे,
रास्ता मुझे मिलता नहीं।
गली गली में भटक रहा हूँ,
उसका पता मालूम नहीं।
चेहरे बहुत पहचाने हैं,
प्यारा चेहरा दिखता नहीं।
रात अंधेरी जम रही है,
किसी को पुछ सकता नहीं।
दूर अंधेरे में कोई दिखता है,
कौन है वो पहचानता नहीं।
पास जा के पुछता हूँ उसको,
जवाब मुझ को मिलता नहीं।
फिर भी मधुर आवाज आई,
प्रिये मुझे क्यों पहचानता नहीं।
ये तो प्रेम नगर है प्रियतम,
क्यों तुझे वो पता नहीं।
ये सुन के चौंक उठा हूँ मैं ,
उस का चेहरा देख पाता नहीं।
घूंघट हटा के सूरत देखी तो,
"मुरली" खुशी को रोक पाया नहीं।

