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पूजा भारद्वाज "सुमन"

Abstract Tragedy Others

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पूजा भारद्वाज "सुमन"

Abstract Tragedy Others

"हां निशब्द हूं मैं

"हां निशब्द हूं मैं

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निशब्द हूं मैं, मेरे बोलों को 

कोई अजीब सा, 

छू सा गया है, आंखों से कुछ अनदेखा

देख कर मौन हूं मैं,

हां निशब्द हूं मैं।


इन अधरों से शब्द कहीं खो से गए,

देख कर भेद दिलों का आंखों से अश्रु बह से गए

अश्रु रोकने में अब नहीं समर्थ हूं मैं

हां निशब्द हूं मैं।


जिस लिबास ने इज्जत बचाने को तन ढका

क्यों उसी को तार तार कर देते हैं लोग

क्यों इतनी सुसभ्य संस्कृति को ज़ार ज़ार कर देते हैं लोग 

यही सब देख कर क्षुब्द हूं मैं

हां निशब्द हूं मैं।


क्या लिखूं इस कलम से में

दुनिया में ज़हर इतना भरा 

मानव, मानव को ना जाने, लहू-लोलुप हैं लोग

देखकर इंसान का दोगला चेहरा क्रुद्ध हूं मैं

हां निशब्द हूं मैं।


जिस धरा पर जन्मे मोहन, संदेश प्रेम का देने

बने हिन्दू - मुस्लिम लगे एक दूजे को खोने 

धर्म की इसी विचित्र दुविधा से त्रस्त हूं मैं

हां निशब्द हूं मैं।


पहले हमारी संस्कृति में बेटियों

को देवी की तरह पूजा जाता था

पर अब उनको रौंद, उपवन उजड़ता देख विक्षुब्ध हूं मैं

हां निशब्द हूं मैं।


नहीं बचे अब कोई शब्द मेरे 

काश कहीं से आ जाएं वापस, फिर वही अल्फ़ाज़ मेरे 

धरा से लेकर व्योम तक कुछ

अपने होने का आगाज़ फिर लिख सकूं मैं

इसलिए निशब्द हूं मैं।


"हां निशब्द हूं मैं.......


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