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Vijaykant Verma

Tragedy

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Vijaykant Verma

Tragedy

बचपन लौटा दो

बचपन लौटा दो

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कोई बचपन लौटा दो

वो मासूम सा बचपन

जहां सब अपने थे

पराया तो कोई न था

न कोई धर्म जात थी

न कोई भेदभाव था

सब कितने अच्छे थे

दिल से कितने सच्चे थे

आपस में कितना था प्यार ..!

हम बड़े हो गए

क्यों इतना बदल गए

क्यों दुश्मन हो गए

अपने ही दोस्तों के

जिन्हें हम करते थे अपना अज़ीज़ ..!

क्यों हम खफा हो गए


अपने ही भाई बहनों से

माता-पिता दादा दादी से

रिश्ते नाते सगे सम्बन्धियों से

लड़ने लगे

जमीन जायदाद के लिए

और बहाने लग

अपनों का ही खून..!

काश, इस दुनिया में

हर इंसान बच्चा होता

अपने कलुषित विचारों को त्याग

बचपने में लौट आता

विश्व से आतंक का

समूल ही विनाश हो जाता

किसी के दिल में

नफरत और घृणा न होती

हर मानव के दिल में

प्रेम होता प्यार होता

न गांव अपना होता

न शहर अपना होता

न प्रदेश अपना होता

न देश अपना होता

बल्कि सारा संसार होता अपना

स्वर्ग से भी सुंदर

जहां बसता है हर दिल में

प्यार ही प्यार..!

बेशुमार..!!



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