STORYMIRROR

Vijaykant Verma

Abstract

2  

Vijaykant Verma

Abstract

हाले दिल

हाले दिल

1 min
115

हाले दिल क्या सुनाऊं दोस्त

उनका दिल पत्थर का

अपना दिल शीशे का

हर पल टूटता है

जिस्म को लहूलुहान करता है

फिर भी उन्हीं के गीत गाता है

क्योंकि प्यार सिर्फ एक बार होता है

अब जिंदगी मिले या मौत

होता वही है

मुकद्दर में जो लिखा होता है



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract