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Prabhat Pandey

Tragedy

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Prabhat Pandey

Tragedy

भ्रष्टाचार ,बेलगाम हो रहा है

भ्रष्टाचार ,बेलगाम हो रहा है

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आज कथनी का कर्म से 

कोई मेल नहीं है 

कहने को बातें ऊँची 

करने को कुछ नहीं है ,

गीता रामायण की धरती पर 

हिंसा का संगीत चढ़ा है, 

कैसे बचेगी मानवता 

दानवता का दल बहुत बड़ा है! 

अब प्रेम का पथ 

शूल पथ हो रहा है, 

अब सत्य का रथ ध्वस्त हो रहा है ,

अब बांसुरी का स्वर लजीला हो रहा है 

अब काग का स्वर ही सुरीला हो रहा है ,

नयी सभ्यता आचरण खो रही है 

बिष बीज अपने ही घर बो रही है, 

मंहगाई दावानल सी दिन ब दिन बढ़ रही है 

फिक्र है किसे ?

जनता किस तरह जी रही है 

देश की बन्धुता विषाक्त सी बन रही है 

राजनीति शनै शनै  

स्वार्थ में सन रही है 

सुरक्षित नहीं है बेटी 

नफरती सैलाब उमड़ रहा है 

लोग बौने हो रहे हैं 

दुःशासन हंस रहा है 

अब रोटी के टुकड़ों को 

दूर से दिखा रहे हैं 

ये कैसा नंगा भूंखा 

समाजवाद ला रहे हैं 

अन्तस से असन्तोष 

जन जन में उमड़ रहा है 

झूठा आश्वासन ही केवल 

शासन चला रहा है 

'प्रभात ' सामन्ती युग से इस वर्तमान युग तक !

परिवर्तन इतना ही हो रहा है 

राजा तो आधुनिकतम बन गया 

भ्रष्टाचार बेलगाम हो रहा है! 


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