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Prabhat Pandey

Inspirational

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Prabhat Pandey

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कविता : माँ

कविता : माँ

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माँ के जीवन की सब साँसे 

बच्चों के ही हित होती हैं 

चोट लगे जब बालक के तन को 

आँखें तो माँ की रोती हैं 

ख़ुशी में हमारी, वो खुश हो जाती है 

दुःख में हमारे, वो आंसू बहाती है 

निभाएं न निभाएं हम 

अपना वो फ़र्ज़ निभाती है

ऐसे ही नहीं वो, करुणामयी कहलाती है

प्रेम के सागर में माँ, अमृत रूपी गागर है 

माँ मेरे सपनों की, सच्ची सौदागर है


व्यर्थ प्रेम के पीछे घूमती है दुनिया 

माँ के प्रेम से बढ़कर, कोई प्रेम नहीं है 

जितनी भी जीवित संज्ञाएँ भू पर उदित हैं 

वे सब माँ के नभ की, प्राची में अवतरित हैं 

जो जीवन को नई दिशा देने, अवतरित हुए हैं 

जो अज्ञान तिमिर में, बनकर सूरज अवतरित हुए हैं 

उन सबके ऊपर, बचपन में माँ की कृपा थी 

उनके जीवन पर माँ के उपकारों की वर्षा थी 

अगर ईश्वर कहीं है, उसे देखा कहाँ किसने 

माँ ईश्वर की है रचना, पर ईश्वर से बढ़कर है 

छीन लाती है अपने औलाद के खातिर खुशियां 

इसकी दुआ जय के शिखरों पर बैठाती 

हर रूह, हर धड़कन में 

जीने का हौसला माँ भरती 

घना अंधेरा हो तो माँ दीपक बन जाती 

ऐसे नहीं वो करुणामयी कहलाती 

प्रेम के सागर में माँ, अमृत रूपी गागर है 

माँ मेरे सपनों की, सच्ची सौदागर है।


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