कविता : जीवन
कविता : जीवन
जीवन क्षेत्र है कर्म युद्ध का
नयन के सैन को उच्चार देता है
जीवन सुगन्ध है पुष्प हजारों की
उम्र के आवेग को पहल देता है
जीवन भजन है, जीवन है पूजा
उठ रहे उच्छवास को तरह देता है
प्रतिपल सुनहरे स्वप्न बुनता है ये
कुलबुलाती कल्पना को छन्द देता है
चलता सतत न थकता रुकता
अव्यक्त भावना को शब्द देता है।।
इतफाकों का अजीब सा रंग है जीवन
छटपटाती रैन को स्वप्न देता है
जीवन नाम नहीं तस्वीरों का
कहीं पे चाँद कहीं आफताब देता है
जीवन है कुंजी कार्य सिद्धि की
वक्त आने पर हिसाब देता है
'प्रभात ' सौ वर्ष का है ये मानव जीवन
मानव क्या ,मानव बनकर जीता है ?