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Prabhat Pandey

Tragedy

4  

Prabhat Pandey

Tragedy

कोरोना त्रासदी (अपनों को खोने का गम )

कोरोना त्रासदी (अपनों को खोने का गम )

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अंधेरे में डूबा है यादों का गुलशन 

कहीं टूट जाता है जैसे कोई दर्पण 

कई दर्द सीने में अब जग रहे हैं 

हमारे अपने, हमसे बिछड़ रहे हैं 


न जाने ये कैसी हवा बह रही है 

ज़िन्दगी भी थोड़ी सहम सी गई है 

हवाओं में आजकल, कुछ तल्खियां हैं 

राहों में आजकल, कुछ पाबंदियां लग गई हैं।


आंखों का है धोखा या धोखा मिट रहा है 

फूलों में आजकल, कुछ बेनूरियां हो गई हैं 

ज्वार समुन्दर में आया बेमौसम है 

नदियां बेखौफ मचलने लगी हैं 

विसाते जीस्त पर वक्त, एक बाजी चल रहा है 


उठता धुआं, आकाश की लालिमा पी रहा है 

न जाने ये कैसी हवा बह रही है 

ज़िन्दगी भी थोड़ी सहम सी गई है 

हवाओं में आजकल, कुछ तल्खियां हैं 

राहों में आजकल, कुछ पाबंदियां लग गई हैं।


अब रंगों में, जहर घुल गया है 

आग कितनी आम हो गई है 

अल्फाज थक गये हैं या ख़त्म बाते हुई हैं 

दर्द की तस्वीरों में, आरजू बिखर सी गई है 


न जाने ये कैसी हवा बह रही है 

ज़िन्दगी भी थोड़ी सहम सी गई है 

हवाओं में आजकल, कुछ तल्खियां हैं 

राहों में आजकल, कुछ पाबंदियां लग गई हैं। 


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