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नन्द कुमार शुक्ल

Tragedy

4  

नन्द कुमार शुक्ल

Tragedy

मनोरंजन आज कल

मनोरंजन आज कल

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दिन भर अथक कार्य करके जब,

हारे थके लौट घर आते।

मन विचलित तन शिथिल चाहते ,

कुछ अच्छा हम पाते।

कुछ परिजन कुछ पुस्तक कुछ,

टेलीविजन को चलाते।

मन अनुकूल देख पढ सुनकर ,

अतुलित शान्ती पाते।

है समाज साहित्य कला का ,

नाता बहुत पुराना ।

साहित्य कला दोनो का कर्म ,

दर्पण समाज को दिखलाना ।

पहले आदर्श चरित्र क्रिया थे ,

केन्द्र बिन्दु साहित्य कला के ।

आज नग्नता और नीचता ,

भरे पडे अश्लील दृश्य से।

धर्म जातियों मे नफरत का ,

ऐसा बिष घोला जाता ।

मिटता कटता मनुज सुखी ,

कोई भी नजर नही आता।

सीखे समाज साहित्य कला से ,

इसका हरदम ध्यान रहे।

प्राणिमात्र का हित हो जिसमे ,

ऐसी अविरल धार बहे।

मान और सम्मान की चाहत ,

ऐसी भी न बनाओ ।

अपने हित की खातिर सुख ,

सौहार्द कभी न मिटाओ।

उत्तम चरित्र नैतिक गुण से ,

भरपूर समाज बनाओ।

खुद रहकर खुश जीवन मे,

खुशहाली देकर जाओ।



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