मनोरंजन आज कल
मनोरंजन आज कल
दिन भर अथक कार्य करके जब,
हारे थके लौट घर आते।
मन विचलित तन शिथिल चाहते ,
कुछ अच्छा हम पाते।
कुछ परिजन कुछ पुस्तक कुछ,
टेलीविजन को चलाते।
मन अनुकूल देख पढ सुनकर ,
अतुलित शान्ती पाते।
है समाज साहित्य कला का ,
नाता बहुत पुराना ।
साहित्य कला दोनो का कर्म ,
दर्पण समाज को दिखलाना ।
पहले आदर्श चरित्र क्रिया थे ,
केन्द्र बिन्दु साहित्य कला के ।
आज नग्नता और नीचता ,
भरे पडे अश्लील दृश्य से।
धर्म जातियों मे नफरत का ,
ऐसा बिष घोला जाता ।
मिटता कटता मनुज सुखी ,
कोई भी नजर नही आता।
सीखे समाज साहित्य कला से ,
इसका हरदम ध्यान रहे।
प्राणिमात्र का हित हो जिसमे ,
ऐसी अविरल धार बहे।
मान और सम्मान की चाहत ,
ऐसी भी न बनाओ ।
अपने हित की खातिर सुख ,
सौहार्द कभी न मिटाओ।
उत्तम चरित्र नैतिक गुण से ,
भरपूर समाज बनाओ।
खुद रहकर खुश जीवन मे,
खुशहाली देकर जाओ।