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Husan Ara

Romance Classics

4.8  

Husan Ara

Romance Classics

चाहत के किस्से

चाहत के किस्से

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तुझको अपनी ज़मीन, अपना आसमान लिखता रहा।

मैं कवि था, कविताओं में अपने अरमान लिखता रहा।।


तेरी हसीं को बहती नदी कहता,और मुस्कान को कली।

तुझको संगमरमर, तेरे चेहरे को मैं चांद लिखता रहा।।


आंखों की गहराइयों को समुंदर भी लिखा मैंने ।

और तेरी जुल्फों के अंधेरे को, मै शाम लिखता रहा।।


अपने सारे गम,  सीने में छुपाकर कहीं ।

मैं तुझको खुशियों के पैग़ाम लिखता रहा।।


बार बार आते, हवा के तेज़ झोंको में खड़ा,

मैं मुसलसल रेत पर तेरा नाम लिखता रहा।।


अपनी सारी दुनिया तुझ पर लुटाता रहा ।

तेरे दिए जख्मों को अपना ईनाम लिखता रहा। ।


ख्यालों की दुनिया में ही जिंदगी गुज़र कर दी मैंने।

और कागजों पर अपनी पहचान बेनाम लिखता रहा।।


हँसा कोई मुझपर, किसी ने दीवाना बताया मुझे।

फिर भी चाहत के किस्से, सरेआम लिखता रहा।।


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