आशा
आशा
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उठो ! अब जाग जाओ,
गहरी है नींद निराशा की।
किरन हर रोज़ निकलती है ,
पूरब से एक आशा की ।।
स्वप्न सलोने , पूरे करने,
साहस से हैं, सीने भरने ।
मिटा लकीरें अब मस्तक से,
खुद से वादे , पूरे करने ।।
सूली पर चढ़ने मत देना,
अपने मन की अभिलाषा की ।
किरन हर रोज़ निकलती है,
पूरब से एक आशा की ।।
अंधकार निराशा का , कितना भी गहरा हो,
जब खुलें विश्वास की आंखे, तभी सवेरा हो।
कदम बढ़ें हिम्मत, हौसले ,आत्मविश्वास से,
और तेरी प्रतीक्षा में समय भी ठहरा हो ।।
उठो ! अब जाग जाओ,
गहरी है नींद निराशा की।
किरन हर रोज़ निकलती है ,
पूरब से एक आशा की ।।