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Husan Ara

Abstract Classics

4.8  

Husan Ara

Abstract Classics

रौशनियाँ

रौशनियाँ

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कुछ लोग कह देते हैं,

और कुछ गमों को छुपाए रहते हैं।

यहां सब अपने दिलों में,

बोझ उठाए बैठे हैं।।


 गैरों को शिकवे,

 फिर भी कम ही रहे मुझसे।

 ये तो मेरे अपने हैं, 

जो मानो सदियों से ऐंठे हैं।।


मेरी ख्वाहिशों का बाज़ार ,

 हमेशा गर्म ही रहा।

आज भी कई अरमान, 

बेकरार बैठे हैं।।


बुजुर्गों को अपने कभी ,

कमज़ोर मत समझना।

ये दुनिया की सब बातों के,

तजुर्बों को समेटे हैं।।


साथ मेरा हर बार छोड़ा गया,

यकीन भी हर बार तोड़ा गया।

फिर भी देखो , दुनिया की

मुहब्बत में गिरफ्तार बैठे हैं।।


खुशियां भी आकर कुछ दिन,

बसना चाहती हैं मेरे घर पर।

मगर ये गम हैं जो देहलीज में,

चादर बिछाए लेटे हैं।।


उम्मीद की एक लौ ही,

अंधेरों में मेरा सहारा रही।

और लोग समझते हैं , 

हम हमेशा से ही रौशनियाँ लपेटे हैं।।


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