सहकर्म
सहकर्म
मानव जीवन अनुयायी है
ठोकर उसने जब खाई है
न वह सिमटा, न वह टूूटा
साहस उसका अपार है
न उसने लूटा, न वह लुटा
सीमाओं का उस पर भार है
उसकी सहमति पल-छिन्न में है
उसकी तरक्की जीवन में है
न वह जोगी, न परमयोगी
वह तो अतुल्य कर्मकार है
उसकी अनुभूति परकल्याणी
उसकी स्वाति साकार है
सहकर्म का उस पर प्रभाव है
तथैव उसका स्वप्न करूणानिधार है।