कैसे शिष्य गुरु-रूप हो पाता है
कैसे शिष्य गुरु-रूप हो पाता है
कैसे शिष्य गुरु-रूप हो पाता है ?
जब संकोची से संजीदा हो जाता है
जब स्वभाव से स्वाभिमान जाग जाता है
जब सबकुछ से संतोष बन जाता है
जब सर से साहिल पर आ जाता है
तब शिष्य गुरु-रूप हो जाता है
जब अपनी सोच को संस्कार में बदल पाता है
जब अपने संताप को समाप्त कर पाता है
जब अपने सत्य को सर्वमान्य बना पाता है
जब अपने स्वार्थ को सेवा भाव पर ला पाता है
तब शिष्य गुरु-रूप हो जाता है।