Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

रामयण २७ ;जयंत की मूर्खता

रामयण २७ ;जयंत की मूर्खता

1 min
23.9K



चित्रकूट वन में रहते हुए

विहार करें सीता और राम

लक्ष्मण उनकी सेवा में व्यस्त हैं

मुनियों के लिए सुख का धाम।


फूल चुनें सुंदर वन से प्रभु

फूल से वो गहने बनावें

स्फटिक शिला पर बैठे हैं वो

सीता जी को ये पहनावें।


जयंत पुत्र देवराज का

मूर्ख जैसी हरकत है करता

बल कैसे जानूं मैं प्रभु का

कौवे का वो रूप है धरता


चोंच मारकर चरण में सीता के

कौवा वहां से भाग चला

खून बह रहा, राम ने देखा

बोले तेरा अब हो न भला।


धनुष खींच और सरकंडे का

एक बाण सन्धान किया

बाण दौड़ा जयंत के पीछे

प्रभु का पराक्रम था जान लिया।


व्याकुल हो अपनी जान बचाने

अपने पिता के पास गया

राम विरोधी जान के उसको

इंद्र ने भी आश्रय न दिया।


सभी लोकों में गया था भय से

किसी ने भी न रखा उसको

दया आ गयी नारद को थी

राम के पास भेजा उसको।


विनती की उसने रामचंद्र की

हे शरणागत, हे हितकारी

क्षमा कीजिये मुझको स्वामी

भूल हुई है मुझसे भारी।


प्रताप को आप के जान न पाया

कर्म का फल मैंने भोग लिया

प्रभु ने जान बख्श दी उसकी

काना करके छोड़ दिया।


 




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics