रामयण२० ;बाल्मीकि आश्रम में
रामयण२० ;बाल्मीकि आश्रम में
चलते चलते देखा वन सुंदर
पहुंचे वाल्मीकि आश्रम
मुनि उन को थे लेने आ गए
राम का भी था हर्षित मन।
पास बैठे मुनि के राम जी
वनवास की कथा सुनाई सब
कहा आप त्रिकालदर्शी हैं
स्थान बताओ मुझको अब।
जहाँ पर एक कुटिया बनायें
मैं, सीता लक्ष्मण रहें
सुन कर प्रभु के वचन प्रेम भरे
बाल्मीकि ऐसा कहें।
आप पूरे जगत के ईश्वर
माता जानकी माया हैं
लक्ष्मण जी अवतार शेष के
पृथ्वी का भार उठाया है।
दुष्ट राक्षसों का वध करने को
मनुष्य रूप है ये धरा।
चरित्र आप के देख के सारे
मन मेरा सुख से भरा।
आप को स्थान मैं क्या बतलाऊँ
आप बसें हैं कण कण में
सुनकर बात मुनि की रघुवर
मुस्का दिए मन ही मन में।
मुनि बोले फिर भी आप ने
पूछा है तो बतलाऊँ मैं
चित्रकूट एक पर्वत सूंदर
शोभा उस की क्या गाऊं मैं।