वेदना के द्वार पर
वेदना के द्वार पर
जंग लगने तुम न देना तीर पर तलवार पर।
सत्य की विजयी पताका गाड़ना संसार पर।।
कल्पना के पंख लेकर मन भ्रमण को जब चला ;
सृष्टि को साकार पाया वेदना के द्वार पर।
मौन अधरों की व्यथा समझे वहीं इंसान है ;
भाव सूँची भी रचित है बस इसी आधार पर।
धड़कने थम सी गयीं साँसे भी घुटने सी लगीं ;
न्याय को झुकते जो देखा स्वार्थ की दीवार पर।
बोलियाँ जब भी लगीं बस झूठ ही बिकता रहा ;
सत्य सहमी दृष्टि बस गाड़े रहा बाजार पर।