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Brijlala Rohanअन्वेषी

Classics Inspirational

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Classics Inspirational

चिरहरण

चिरहरण

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चिरहरण हो रहा द्रौपदी का,

मदद की न कोई आता हाथ   

बस आपका ही एक सहारा है,

बचा लो मेरी लाज        


बताओ कब आओगे,

आततायियों का संहार करने 

हे !गोकुलनाथ।                                


दुशशासन बन बैठे हुए हैं

उजली चमडी वाले काले लोग !

महत्वाकांक्षा पाल लिये हैं

न जाने कितने धृतराष्ट्र सरीखे लोग !


कब तक उलाहना सहती रहूं

दुष्ट दुर्योधन की ?     

रो -रो कर हुआ सारा पट सराबोर,

बतलाओ न ! कब आओगे

धर्म की रक्षा हेतु हे ! माखनचोर ?            


आश तुम्हारी ही एक बची है,

उम्मीद भी तुमसे लगाये बैठी हूं। 

प्रतीक्षा में नयन टिकी है,

रात बीती हो गया अब भोर !  


क्या तुम्हारा अब भी

मन हुआ नहीं भाव - विभोर !       

बतलाओ न

कब आओगे तुम हे ! रणछोड़ ?            


दियूतक्रीड़ा में अपने ही

जुआ में मुझे लगाते,           

बिना मेरी अनुमति के ही

मेरा ही सौदा कर जाते !        


सिसकती आवाज,

चक्षु से गिरते सदानीरा लोर        

मदद को कब आओगे

बतलाओ तुम माखनचोर ?


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