जानते तो थे... (गज़ल)
जानते तो थे... (गज़ल)
जानते तो थे उसे, कई ज़माने से।
बन के रह गये वो अब फ़साने से॥
जिनके आँखों पर कर के भरोसा
तौबा कर लिया हमने मयख़ाने से॥
जिन गेसुओं तले गुज़री मेरी रातें
हो के रह गए अब वो अनजाने से॥
जिस पहलू में रहना था ‘ज़िन्दा’
वो ही लगने लगे उनको मसाने से॥
दे जाते हैं ‘अपने’ जो ज़ख़्म गहरे
वो कहाँ भरते हैं रासि सहलाने से।
जानते तो थे उसे, कई ज़माने से।
बन के रह गये वो अब फ़साने से॥