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Rajiv R. Srivastava

Classics

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Rajiv R. Srivastava

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शहीद भगत सिंह

शहीद भगत सिंह

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माह सितम्बर-सत्ताईस थी, और साल उन्निस सौ सात।

विद्या-किशन के घर जन्मा वो, था ईश्वर का सौग़ात ॥१॥

जन्म लेते आज़ाद कराया, अपने चाचा-प्रणेता को।

'भाग़ांवाला' नाम मिला तब, इस भारत माँ के बेटा को ॥२॥ जलियाँवाला बाग़ में जब, डायर कहर बरसाया था।

बारह साल के इस बच्चे के, मन में क्षोभ भर आया था ॥३॥ ख़ून सनी बस लाशें थीं, लाल मंज़र उस परिपाटी का। "गोरों को परदेश पठाऊँ अब", सौगंध खाई उस माटी का ॥४॥ 'लालाजी' के छत्रछाया में, आंदोलन की शुरुआत हुई।

यशपाल, सुखदेव, पंडित सा, सहचरों से मुलाक़ात हुई ॥५॥

गोरी लाठी से घायल ‘लालाजी’, जब चीर निद्रा में लीन हुए।

खौला ख़ून फिर रण-बांकुरों का, सब रावण-वध में लवलीन हुए ॥६॥

राजगुरु, आज़ाद, भगत सिंह, और जयगोपाल की टोली। लालाजी का क़र्ज़ चुकाया, मार सांडर्स को गोली ॥७॥ चारों ओर डंका बज गया, इन मतवालों की टोली का। बदला लेना तय हुआ तब, जालियाँवाला ख़ूनी होली का ॥८॥

ख़ून-ख़राबे से इतर कुछ, अब ऐसा भी कर जाना था। ग़ुलामी से जकड़ी जनता में, आज़ादी का अलख जगाना था ॥९॥ असेंबली में फिर बम फेंक, भारत का सिंह गुर्राया था।

रानी की सिंहासन डोल उठी, औ' लंदन भी थर्राया था ॥१०॥ मार्च तेईस,उन्नीस सौ इकतीस, करके गया हमें ग़मगीन।

हँसते-हँसते फाँसी चढ़ गए, वो कर गए अमर यह दिन ॥११॥

चिंगारी फिर ज्वाला बन गई, और जली मशालें चहुँओर।

गुलामी की काली रात नही, अब चाहिए आज़ादी की भोर ॥१२॥ सन सैंतालीस में मुक्त हुआ, देश लेकर लाखों जान। टाँग दीवारों पे,भूल गए हम, सब व्यर्थ गया बलिदान ॥१३॥ तोड़ी ज़ंजीरें ग़ुलामी की, वो देकर अपनी जान।

तरस रहा वो रूह आज भी, पाने को मान-सम्मान ॥१४॥

छोटी उम्र में, बड़े काज किए, कर नाम-ए-वतन जवानी।

ऐ 'भारत', तु भुल ना जाना, शहीदों की अमर कहानी ॥१५॥


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